The Train... beings death 30
कमल नारायण जी उस जगह पर पहुंच गए जहां पर काफी सालों के पहले आचार्य चतुरसेन और आचार्य अग्निवेश ने आयाम द्वार बंद करने के लिए अनुष्ठान किया था। कमल नारायण जी ने सारी तैयारियां करके इंस्पेक्टर कदंब और नीरज को एक अभिमंत्रित यंत्र में बैठा दिया था और यह कह दिया था कि बिना उनकी आज्ञा के दोनों ही यंत्र से बाहर ना निकले। इंस्पेक्टर कदंब और नीरज ने उनकी बात मान ली थी।
उसके बाद कमल नारायण जी ने अपना अनुष्ठान आरंभ किया मंत्र जाप और हवन में आहुतियां देने के एक घंटे बाद कमल नारायण जी ने अपना अनुष्ठान पूरा किया। जैसे ही अनुष्ठान पूरा हुआ माहौल में अचानक से एक सुखद परिवर्तन महसूस हुआ और कमल नारायण जी की आवाज आई। ऐसा लग रहा था कि सामने कोई था जिससे कमल नारायण जी बातें कर रहे थे। उस सामने वाले व्यक्ति को इंस्पेक्टर कदंब और नीरज देख नहीं पा रहे थे। वह कोशिश कर रहे थे कि यह जान पाएं कि सामने कौन था? लेकिन तभी अचानक उन्होंने एक नाम सुना... जिसे सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब और नीरज के होश ही उड़ गए और नीरज तो लगभग बेहोश होते होते बचा।
कमल नारायण जी ने कहा, "हमें तुम्हारी सहायता की आवश्यकता है.. गौतम..!!"
गौतम का नाम सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब ने चौंककर नीरज की तरफ देखा। नीरज को देखकर तो ऐसा लग रहा था जैसे नीरज ने पता नहीं क्या देख लिया?
तभी सामने से आवाज आई, "कैसी सहायता कमल...?"
यह सुनते ही नीरज डर और घबराहट से बेहोश हो गया। इंस्पेक्टर कदंब की भी हालत काफी खराब दिखाई दे रही थी लेकिन फिर भी उन्होंने काफी हिम्मत से अपने आप को संभाला हुआ था। तभी कमल नारायण जी ने पूछा, "तुम्हें तो पता ही होगा जो भी कुछ भवानीपुर में हो रहा है... वह क्यों हो रहा है?"
कमल नारायण जी के सवाल पर सामने से आवाज आई, "मुझे पता है.. भवानीपुर में आजकल क्या हो रहा है। लेकिन यह जो भी कुछ हो रहा है वह आज या कल का नहीं है.. काफी पुराना है।"
"आयाम द्वार और सुरक्षा चक्र की रक्षा और उन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए ही तुमने अपना बलिदान दिया था। तुम्हारी आत्मा की उर्जा से ही आयाम द्वार को मजबूती से बंद करने की शक्ति मिली और वही ऊर्जा सुरक्षा चक्र को भी मिली.. जिसके कारण इस जगह को सुरक्षित किया गया था। ताकि कभी भी किसी और आयाम का जीव धरती पर ना आ सके। तो फिर ऐसा कैसे हुआ...?" कमल नारायण जी ने संजीदगी से पूछा। कमल नारायण जी के सवाल पर सामने से केवल सन्नाटा ही सुनाई दे रहा था।
तभी कमल नारायण जी ने दोबारा पूछा, "पहले भी हमारी वजह से धरती संकट में पड़ चुकी है। अब मैं नहीं चाहता कि दोबारा हमारी ही वजह से यह संकट गहरा हो। मैं अपनी पोती को इसी वजह से खो चुका हूं। मैं नहीं चाहता कि किसी और के बच्चे भी हमारी इस गलती की भेंट चढ़े।"
कमल नारायण जी की बात खत्म होते ही सामने से आवाज आई, "तुम्हारी पोती...? कैसे खो चुके हो?? क्या हुआ?" सामने से आने वाली आवाज थोड़ी घबराई हुई सी महसूस हो रही थी।
तभी कमल नारायण जी ने कहा, "कुछ विचित्र से जीवों ने मेरी पोती का घर से अपहरण कर लिया था। वह यहीं से कुछ दूर पर बेहोश मिली थी। जब उसे अस्पताल ले जाया गया तो पता चला कि वह गर्भवती थी और तुम विश्वास नहीं करोगे कि उसके गर्भ में आयाम द्वार से आने वाले किसी विचित्र जीव का अंश था। और वह अंश मेरी पोती के प्राण लेकर इस धरती पर जन्म ले चुका है।" इतना कहते हुए कमल नारायण जी की आंखों में आंसू आ गए थे.. जो उन्होंने अगले ही पल पौंछ दिए और अपने आप को फिर से मजबूत बनाते हुए कहा, "जैसे ही उन्हें पता चलेगा कि उनकी संतान सकुशल जन्म ले चुकी है और उनका प्रयोग सफल हो चुका है। तो वो कुछ ऐसा ही फिर से करने का प्रयास करेंगे। किसी मानव के गर्भ से जन्म लेने की कारण उनकी आने वाली पीढ़ी में मानवीय संवेदनाएं, मानवों की तरह तीक्ष्ण बुद्धि के साथ-साथ हमारी और भी बहुत सारी विशेषताएं उनमें समाहित हो गई हैं.. तो वह उन सब का उपयोग वो सारी मानव जाति को खत्म करने के लिए करेंगे। अगर ऐसा हुआ तो विनाश होना निश्चित है।"
सामने जो व्यक्ति था वह बहुत ही ज्यादा उदास और हारा हुआ सा लग रहा था। उसने बहुत ही कमजोर शब्दों में कहा, "मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता। जब तक आचार्य का बनाया सुरक्षा चक्र पवित्र था.. तब तक मेरे अंदर इतनी क्षमता थी कि आयाम द्वार को किसी भी तरह ना खुलने दूं। लेकिन जैसे ही यहां की पवित्रता नष्ट हुई.. मैंने भी अपनी सारी शक्तियां खो दी। अब मैं चाहकर भी तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।" यह कहते हुए सामने वाला व्यक्ति गौतम जो दिखाई नहीं दे रहा था.. बहुत टूटा हुआ सुनाई पड़ रहा था। उसकी सहायता ना कर पाने की बात सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब भी अपने आपको लड़ाई शुरू होने से पहले ही हरा हुआ महसूस कर रहे थे।
तभी कमल नारायण जी की आवाज आई, "लेकिन यहां की पवित्रता नष्ट हुई कैसे??"
सामने से कुछ भी आवाज नहीं आई। तभी कमल नारायण जी ने दोबारा पूछा, "बताओ गौतम..! ऐसा यहां क्या हुआ था कि यहां की पवित्रता नष्ट हो गई?"
गौतम ने बताना शुरू किया, "जब अनुष्ठान पूरा होने के बाद तुम सब लोग चले गए थे। तब भी मैं सब कुछ महसूस कर पा रहा था। मैं मर कर भी नहीं मरा था। लोग सही कहते हैं कि आत्मा कभी नहीं मरती मैं हर समय इस सुरक्षा चक्र में चक्कर लगाता हुआ यहां की सुरक्षा व्यवस्था को देख रहा था। तुम लोगों के जाने के लगभग 5 वर्ष बाद इस सुरक्षा चक्र के पास ही कुछ तांत्रिकों ने एक विशिष्ट अनुष्ठान करना शुरू कर दिया था।"
तभी कमल नारायण ने टोकते हुए पूछा, "यहीं क्यों..?? और भी तो काफी बड़ी जगह है यह.. उन लोगों ने इसी जगह को अनुष्ठान के लिए क्यों चुना?"
कमल नारायण जी की बात सुनते ही गौतम की आवाज आई, "वह इसलिए कि एक तो यहां आयाम द्वार खुला था.. तो उसकी तीव्र उर्जा यहां पर रह गई थी। साथ ही अनुष्ठान पूरा होने के बाद जब मैंने यहां अपने प्राण त्यागे.. तो मेरी आत्मा की सकारात्मक उर्जा का भी काफी अंश यहीं पर रह गया था। इसके कारण इस जगह और इसके आसपास की जगह पर एक विशिष्ट ऊर्जा चक्र का निर्माण हुआ था। ऐसा कहते हैं कि ऐसी जगह पर किसी भी तरह का अनुष्ठान करने पर उसका फल 10 गुना अधिक लाभदायी और जल्दी मिलता है। इसीलिए कुछ तांत्रिकों ने यहां पर अनुष्ठान करना शुरू कर दिया।
वह लोग अच्छे तांत्रिक नहीं थे.. किसी काली दुष्ट शक्ति को पृथ्वी पर लाना चाहते थे ताकि सम्पूर्ण पृथ्वी पर राज कर सकें। उसके लिए उन्हें एक नरबलि देनी थी। यहां की तीव्र सकारात्मक ऊर्जा की वजह से वह लोग अपना अनुष्ठान ठीक से पूरा नहीं कर पा रहे थे। जैसे ही उन्होंने एक कन्या की बलि देने का प्रयास किया.. वह कन्या जिसे उन्होंने कोई मादक पदार्थ पिलाकर बेहोश किया था ताकि उसकी बलि आसानी से दे पाए पर ऐन वक्त पर उसे होश आ गया और वह वहां से भाग खड़ी हुई। भागते भागते वह इस जगह पर आकर छिप गई। उस कन्या के वहां से भाग जाने के कारण उनका अनुष्ठान खंडित हो गया था। जिसकी वजह से उन्होंने जो भी कुछ किया था.. वह सब कुछ नष्ट हो गया।
इसी क्रोध में वह तांत्रिक भी उस लड़की के पीछे पीछे भागते हुए यहां तक पहुंच गए। गुस्सा उनके सर पर चढ़कर तांडव कर रहा था इसीलिए उन्हें अच्छे बुरे का कोई भी होश नहीं रहा और इसी जगह उन्होंने उस लड़की के साथ दुर्व्यवहार किया और उसकी बेरहमी से हत्या कर दी। वह लड़की बहुत ही ज्यादा डरी सहमी सी दया की भीख मांग रही थी। लेकिन अंत समय में उसका गुस्सा चरम पर था। इसी से उस लड़की की हाय के कारण वह सभी तांत्रिक यहां से बाहर नहीं जा पाए और उनकी आत्मा यहीं पर बंध कर रह गई।
उस लड़की का खून इस सुरक्षा चक्र के अंदर बहा था इसीलिए यहां की शुभ शक्तियां नष्ट हो गई और सुरक्षा चक्र भी निष्क्रिय हो गया। मैंने अपनी इच्छा से अपने प्राण यहां की सुरक्षा के लिए त्यागे थे। मैं भी अपनी सारी शक्तियां खो चुका था। यहां पर खून गिरने के कारण यहां की सुरक्षा व्यवस्था कमजोर हो गई।
एक मनहूस घड़ी में जहां पर उस अनुष्ठान के सारी पूजन सामग्री और मेरी मृत देह गढ़ी हुई थी वहां पर कुछ बनाने का और खुदाई का काम शुरू हुआ। खुदाई के दौरान वह सब पूजन सामग्री और मेरा कंकाल मिला तो उन्होंने उसे फेंक दिया और उसके ऊपर से रेल की पटरिया बिछा दी। जिन लोगों ने वो रेल की पटरियां बिछाई थी.. उन्हें नहीं पता था कि जहां पर उन्होंने वह पटरियां बिछाई थी.. वहीं पर किसी समय में आयाम द्वार खुला था। कुछ समय तक तो सब कुछ ठीक था रेल सकुशल आ रही जा रही थी। भवानीपुर के लोग भी रेल व्यवस्था के आने के कारण काफी खुश थे।
एक दिन एक मनहूस घड़ी में जब वो रेल जा रही थी तभी किसी दुष्ट ने रेल में सफर कर रहे लोगों को लूटने के इरादे से सभी को जहर दे दिया.. जिसकी वजह से सारे लोग मर गए। यहां तक कि रेल का ड्राइवर भी उसी दिन काल प्राप्त हो गया। इतनी सारी आत्माएं और उनकी शक्तियां उस आयाम द्वार से टकराई और वह आयाम द्वार खुल गया। तभी से उस मनहूस रेल से मौत सफर करने लगी हैं।" यह सुनते ही कमल नारायण की आंखों से आंसू आ गए थे।
उन्होंने अपने आंसू पौंछते हुए पूछा, "गौतम..! तुमने इतना सब कुछ बता कर हमारी काफी सहायता की है। अब केवल एक सहायता और कर दो। इस आयाम द्वार को दोबारा बंद करने का रास्ता बता दो।"
यह सुनते ही गौतम की आवाज आनी बंद हो गई। जैसे वह कुछ सोच रहा था। कुछ देर बाद गौतम की आवाज आई, "इस आयाम द्वार को दोबारा बंद किया जा सकता है पर इसे वही बंद कर सकता है जो इसके अंदर जाकर सकुशल वापस आया हो।"
यह सुनते ही कमल नारायण ने कहा, "इसमें जाकर आने वाला तो अकेला मैं ही हूं।"
तभी गौतम की आवाज आई, "नहीं..! तुम्हारे अलावा और भी कोई है जो आयाम द्वार के उस तरफ जाकर सकुशल वापस लौटा है। अब अगर वह चाहे तो इस सब में तुम्हारी सहायता कर सकता है। वही इस द्वार को दोबारा बंद करने की सबसे मजबूत चाबी है। जिससे इसे बंद किया जा सकता है। पर एक बात का तुम्हें खास ख्याल रखना होगा। इसे जितना जल्दी हो सके बंद करना होगा।" इतना कहकर गौतम चुप हो गया।
कमल नारायण ने पूछा, "चाबी..? जल्दी ही बंद करना होगा... से मतलब है तुम्हारा..?"
कमल नारायण के सवाल पर गौतम की आवाज आई, "हां..! सही सुना तुमने.. जो भी इस द्वार के अंदर जाकर आया है. उसके प्राण संकट में हैं। एक हफ्ते के भीतर अगर आने वाली अमावस्या से पहले इस द्वार को बंद नहीं किया गया तो अगले 50 वर्षों तक इसे बंद नहीं किया जा सकेगा।"
यह सुनते ही कमल नारायण घबरा गया और बोला, "क्या कह रहे हो तुम?? ऐसा कैसे हो सकता है कि इसे 50 वर्षों तक बंद ना किया जा सके??"
गौतम की चिंता भरी आवाज आई, "जिस विशेष परिस्थिति में यह द्वार खुला था.. उन्हीं विशेष परिस्तिथियों में इसे बंद किया जा सकता है। उन्ही नक्षत्रों, ग्रहों और तिथियों का संयोग एक हफ्ते बाद बुधवार को शाम को 5:00 बजे बन रहा है। उसी समय बाहर से और अंदर से इस अनुष्ठान को किया जाए तो इस आयाम द्वार को सदैव के लिए बंद किया जा सकता है। उसके बाद यह संयोग अगले 50 वर्ष बाद ही बनेगा। तुम तो समझ ही सकते हो कि इस समय इसे बन्द ना किया गया तो अगले 50 वर्षों के बाद कोई से बंद करने के लिए जीवित नहीं बचेगा।"
"लेकिन मैं उसको ढूंढगा कैसे जो आयाम द्वार से सकुशल वापस आया है? बुधवार को आने में भी केवल पांच ही दिन बचे हैं। इतनी जल्दी सबकुछ कैसे होगा?" कमल नारायण ने चिंता से पूछा।
तभी गौतम ने इंस्पेक्टर कदंब की तरफ इशारा करते हुए कहा, "वह जो दो इंसान तुम्हें दिखाई दे रहे हैं.. इस काम में वही तुम्हारी सहायता कर सकते हैं। इससे ज्यादा अब मैं तुम्हें कुछ और नहीं बता सकता। अब मुझे शीघ्र अति शीघ्र वापस जाना होगा। मेरे पास अपनी कुछ भी शक्तियां बाकी नहीं बची है.. इस अनुष्ठान से मुझे जितनी शक्तियां मिली थी वह सब मैंने तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देने में खत्म कर दी। अब मुझे जाना होगा।" इतना कहते ही गौतम की आवाज आनी बंद हो गई।
कमल नारायण की आंखों में आंसू दिखाई दे रहे थे। उसे दोबारा लग रहा था कि वह हार गया। इंस्पेक्टर कदंब भी कुछ कंफ्यूज से दिखाई दे रहे थे। तभी गौतम की दुबारा से मरी हुई सी आवाज आई, "आयाम द्वार तो बंद हो जाएगा पर ट्रेन का आना जाना तभी बंद होगा जब उसके चालक को ये विश्वास हो जाए कि वो मर चुका है।"
ये सुनते ही इंस्पेक्टर कदंब और कमल नारायण जी को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब आखिर होगा कैसे?? वो दोनों सोच में डूबे हुए ही थे कि थोड़ी देर में नीरज को भी होश आ गया था।
तभी कमल नारायण जी ने उन्हें यंत्र से बाहर आने का इशारा करते हुए कहा, "हमारा काम हो गया है। अब हमें जल्दी ही यहां से निकलना होगा।"
इतना कहकर कमल नारायण जी वहां से चल दिए। इंस्पेक्टर कदंब और नीरज भी उनके पीछे पीछे चल दिए।
कमल नारायण जी की हालत काफी अच्छी नहीं थी इसीलिए इंस्पेक्टर कदंब और नीरज कमल नारायण जी को वापस हॉस्पिटल ले आए।
क्रमशः...
Punam verma
28-Mar-2022 10:15 AM
हर भाग में अलग ही twist आता जा रहा है
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Seema Priyadarshini sahay
15-Mar-2022 05:27 PM
बहुत खूबसूरत भाग
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Aalhadini
17-Mar-2022 12:14 AM
Thanks 😊 🙏
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Gunjan Kamal
15-Mar-2022 01:10 PM
शानदार भाग
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Aalhadini
17-Mar-2022 12:14 AM
धन्यवाद 🙏🏼
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